आदित्य हृदय स्तोत्र एक प्रसिद्ध स्तोत्र है जो भगवान सूर्य को समर्पित है। यह स्तोत्र रामायण के युद्ध कांड में प्रकट होता है, जहां भगवान राम रावण से युद्ध करने से पहले ऋषि अगस्त्य से इस स्तोत्र का उपदेश प्राप्त करते हैं।
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आदित्य हृदय स्तोत्र क्या है ?
आदित्य हृदय स्तोत्र भगवान सूर्य को समर्पित एक प्रसिद्ध स्तोत्र है। यह रामायण के युद्ध कांड (युद्ध सर्ग) में दिखाई देता है, जहां भगवान राम को रावण के साथ युद्ध से पहले ऋषि अगस्त्य से यह शिक्षा मिलती है।
यह शक्तिशाली स्तोत्र सूर्य की स्तुति करता है और उनकी सुरक्षा और जीत की कामना करता है। माना जाता है कि इसके नियमित पाठ से स्वास्थ्य में सुधार, मन की शांति, सफलता और शत्रुओं पर काबू पाने जैसे कई लाभ मिलते हैं, जिससे अंततः भगवान सूर्य की कृपा प्राप्त होती है।
आदित्य हृदय स्तोत्र भजन क्यों करते हैं?
- सूर्य के लिए शक्तिशाली भजन: यह सूर्य देवता, हिंदू धर्म में एक केंद्रीय व्यक्ति, को समर्पित स्तुति है। सूर्य को जीवन और कल्याण के स्रोत के रूप में देखा जाता है, और यह भजन उनका आशीर्वाद मांगता है।
- रामायण में संदर्भ: यह एक श्रद्धेय हिंदू महाकाव्य रामायण में दिखाई देता है। भगवान राम, आदर्श नायक, एक महत्वपूर्ण युद्ध से पहले इसका पाठ करते हैं, जो स्तोत्र को शक्ति और विजय की आभा से भर देता है।
- पाठ के लाभ: माना जाता है कि नियमित जप से अनेक लाभ मिलते हैं। इनमें बेहतर स्वास्थ्य और आंतरिक शांति से लेकर सफलता प्राप्त करना और चुनौतियों पर काबू पाना शामिल है। अंततः, इसे सूर्य की दैवीय कृपा प्राप्त करने के एक तरीके के रूप में देखा जाता है।
- आध्यात्मिक महत्व : यह स्तोत्र अपने आप में एक सुन्दर एवं सशक्त रचना है। यह भक्ति, मन को केंद्रित करने और परमात्मा के साथ संबंध की भावना को बढ़ावा देने का एक उपकरण हो सकता है।
Aditya Hridaya Stotra in Hindi
विनियोग:
ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टूपछन्द:, आदित्येहृदयभूतो भगवान ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोग: ||
ध्यानम् –
नमस्सवित्रे जगदेक चक्षुसे,
जगत्प्रसूति स्थिति नाशहेतवे,
त्रयीमयाय त्रिगुणात्म धारिणे,
विरिश्ची नारायण शंकररात्मने |||| अथ आदित्य हृदय स्तोत्रम ||
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् ||
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा ||अर्थ – इधर भगवान श्री राम थककर चिंता में लीन हुए रणभूमि में खड़े हुए| उसी समय रावण भी युद्ध के लिए रणभूमि में आ गया| यह सब देखकर ऋषि अगस्त्य भगवान श्री राम के समीप गए और ऐसे बोले|
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ||अर्थ – सभी के हृदय में बसने वाले हे महाबाहो श्री राम! यह गोपनीय स्तोत्र सुनो| इस चमत्कारी स्तोत्र के जप करने से तुम अवश्य ही अपने शत्रु पर विजय पा लोगे| यह आदित्य हृदय स्तोत्र सबसे पवित्र और सभी शत्रुओं का नाश करने वाला स्तोत्र है| इसका जप करने से हमेशा ही विजय की प्राप्ति होती है| यह अत्यंत ही कल्याणकारी स्तोत्र है|
सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम् ॥
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥अर्थ – यह स्तोत्र सभी कार्यो में मंगल, पापों का नाश करने वाला है| इसी के साथ यह चिंता और शौक को भी दूर करता है और मनुष्य की आयु में भी वृद्धि करता है| जो कि अनंत किरणों से शोभायमान, नित्य उदय होने वाली, देवों और असुरों के द्वारा नमस्कृत है| तुम इस सम्पूर्ण विश्व में प्रकाश फ़ैलाने वाले संसार के स्वामी भगवान सूर्य देव का पूजन करो|
सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥अर्थ – महर्षि अगस्त्य कहते है कि सभी देवता इनके रूप है| सूर्य देव अपने प्रकाश की किरणों से इस जगत को स्फूर्ति प्रदान करते है| सूर्यदेव ही अपनी ऊर्जा के माध्यम से ही इस सृष्टि में देवतागण और असुरों दोनों का पालन करते है| यही है जो ब्रह्मा, स्कन्द, शिव, इंद्र, कुबेर, प्रजापति, समय, काल, यम, चंद्रमा और वरुण आदि को प्रकट करते है|
Aditya Hridaya Stotra in Hindi
पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥
आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः॥अर्थ – यह पितरों, वसु, साध्य, अश्विनीकुमारों, मरूदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण और ऋतुओं को जन्म देने वाले प्रभा के पुंज है| इनको अलग – अलग नामों से जैसे – आदित्य, सविता(जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य(सर्व व्याप्त), खग, पूषा, गभस्तिमान, भानु, हिरण्येता, दिवाकर और
हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥
हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ॥अर्थ – हरिदश्व, सहस्रार्चि, सप्तसप्ति (सात घोड़ो वाले), मरिचिमान(किरणों से सुशोभित), तिमिरोमन्थन(अंधकार का नाश करने वाले), शम्भू, त्वष्टा, मार्तन्डक, हिरण्यगर्भ, शिशिर(स्वभाव से सुख प्रदान करने वाले), तपन(गर्मी उत्पन्न करने वाले), भास्कर, रवि, अग्निगर्भ, अदितिपुत्र, शंख, शीत का नाश करने वाले और
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥
आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः ॥अर्थ – व्योमनाथ, तमभेदी, ऋग ,यजु और सामवेद के पारगामी, धन वृष्टि, अपाम मित्र, विन्ध्यावीथिप्लवंग (आकाश में तीव्र गति से चलने वाले), आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल, सर्वतापन, कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोदभव है|
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥अर्थ – नक्षत्र, ग्रह और तारों के अधिपति, विश्वभावन (विश्व की रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी तेजस्वी और द्वादशात्मा को नमस्कार है| पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरी अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है| ज्योतिर्गणों के स्वामी तथा दिन के अधिपति को नमस्कार है|
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तुते ॥अर्थ – जो जय के रूप है, विजय के रूप है, हरे रंग के घोड़ों से युक्त रथ वाले भगवान को नमस्कार है| सहस्त्रों किरणों से प्रभावान आदित्य को बारम्बार नमस्कार है| उग्र, वीर और सारंग भगवान सूर्यदेव को नमस्कार है| कमलों को विकसित करने वाले प्रचंड तेज वाले मार्तण्ड को नमन है|
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायदित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः॥अर्थ – आप ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों के स्वामी है| सूर आपकी संज्ञा है| यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है| आप प्रकाश से परिपूर्ण है| सबको स्वाहा: करने वाली अग्नि के स्वरूप है| रौद्र रूप आपको नमस्कार है| अज्ञान, अन्धकार के नाशक, शीत के निवारक तथा शत्रुओं के नाशक आपका रूप अप्रमेय है|
तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥अर्थ – आपकी प्रभा तप्त वर्ण के समान है| आप ही हरि (अज्ञान को हरने वाले), विश्वकर्मा (संसार की रचना करने वाले), तम या अँधेरे के नाशक, प्रकाशरूप और जगत के साक्षी आपको हमारा नमस्कार है| हे रघुनन्दन, भगवान सूर्य देव ही सभी भूतों के संहार, रचना और पालन करने वाले है| यही अपनी किरणों से गर्मी और वर्षा करते है|
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ||
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ||अर्थ – यह देव सभी भूतों में अंतर्स्थित होकर उन्हें सो जाने पर भी जागते रहते है, यही अग्निहोत्री कहलाते है| यही वेद, यज्ञ और यज्ञ से मिलने वाले फल है| यह देव सम्पूर्ण लोकों की क्रिया का फल देने वाले देव है|
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति ॥अर्थ – इसमें महर्षि अगस्त्य भगवान श्री राम से कहते है कि राघव! किसी विपत्ति में, कष्ट में, कठिन मार्ग में तथा किसी भय के समय जो भी सूर्यदेव का कीर्तन या उन्हें याद करता है| उसे किसी भी प्रकार दुःख या पीड़ा सहन नहीं करना पड़ता है| आप एकाग्रचित होकर देवादिदेव सूर्यदेव का पूजन करो, इस आदित्य हृदय स्तोत्र का तीन बार लगातार जप करने से आपको युद्ध में अवश्य ही विजय की प्राप्ति होगी|
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥अर्थ – हे महाबाहो इस क्षण आप रावण का वध कर पायेंगे| इस प्रकार ऋषि अगस्त्य आये थे उसी प्रकार वपिस लौट गए| उस समय ऋषि अगस्त्य का यह उपदेश सुनकर महातेजस्वी भगवान श्री राम के सभी शोक दूर हो गई| प्रसन्न और प्रयत्नशील होकर |
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ||अर्थ – परम हर्षित और शुद्धचित्त होकर भगवान श्री राम ने सूर्य देव की तरफ देखा और तीन बार आदित्य हृदय स्तोत्र का जप किया| उसके पश्चात श्री राम जी ने धनुष उठाकर युद्ध के लिए आये हुए रावण को देखा और उससे युद्ध करने का निश्चय किया|
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ||अर्थ – तब सभी देवताओं के बीच में खड़े भगवान सूर्य देव ने प्रसन्न होकर भगवान श्री राम की तरफ देखा और राक्षस रावण का अंत का समय निकट जानकार प्रसन्नता पूर्वक कहा “अब जल्दी करो”
|| इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मिकिये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे पस्चाधिक शततम सर्ग: ||
Conclusion:
Aditya Hridaya Stotra is a hymn that praises the Sun and aims to inspire courage, wisdom, and inner strength. It emphasizes the importance of light and spiritual growth.
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