Shri Gayatri Kavacham Lyrics in Hindiश्री गायत्री कवच माँ गायत्री की प्रार्थना है। महर्षि वेद व्यास ने इस पवित्र ग्रंथ की रचना की थी और भगवान विष्णु ने इसे देवऋषि नारद के साथ साझा किया था। यह श्री भागवत पुराण के बारहवें अध्याय में पाया जाता है। इस कवच का जाप करने से भक्तों को बीमारियों से मुक्ति मिलती है और उनके पाप धुल जाते हैं।
श्री गायत्री कवच माँ गायत्री की महानता और शक्तियों पर प्रकाश डालता है। जो भक्त इसका नियमित पाठ करते हैं, उन्हें दुख, भय और परेशानियों से मुक्ति मिलती है। आइए श्री गायत्री कवच के बारे में जानें।
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Gayatri Kavacham Lyrics with Hindi Meaning
|| श्री गायत्री कवचम् ||
विनियोग:
ॐ अस्य श्रीगायत्री – कवचस्य ब्रह्मा विष्णु रुद्रा ऋषयः, ऋग् यजुः सामाऽथर्वाणि छन्दांसि, परब्रह्म स्वरूपिणी गायत्रीदेवता, भूः बीजम्, भुवः शक्तिः, स्वाहा कीलकम्, श्रीगायत्रीप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।
हिंदी अर्थ – इस गायत्री कवच के ब्रह्मा, विष्णु तथा रूद्र ऋषि है; ऋग, यजु: अथर्व तथा छंद है, परब्रह्मस्वरूपिणी गायत्री देवता है; भू: बीज है, भुव: शक्ति है, माता गायत्री की प्रीति के लिए इसका पाठ करना चाहिए|
ध्यान:
वर्णास्त्रां कुण्डिकाहस्तां शुद्ध निर्मल ज्योतिषीम् ।
सर्वतत्त्वमयीं वन्दे गायत्रीं वेदमातरम् ॥
मुक्ता विद्रुम हेम नील धवलच्छायैर्मुखैस्त्रीक्षणै।
र्युक्तामिन्दु निबद्ध रत्नमुकुटां तत्वार्थ वर्णात्मिकाम्।
गायत्रीं वरदाऽभयाऽङ्कुश कशां शूलं कपालं गुणं।
शङ्ख चक्रमथारविन्दयुगलं हस्तैर्वहन्तीं भजे ॥हिंदी अर्थ – सभी वर्णों के स्वरूप वाली, कुण्डिका को धारण करने वाली, निर्मल ज्योति स्वरूप वाली, शुद्ध, सम्पूर्ण तत्वों से विराजमान, वेदमाता गायत्री की मैं वंदना करता हूँ| जो स्वर्ण, मोती, मूंगा, नील तथा स्वच्छ छाया वाले मुख से सुशोभित है एवं जो स्त्रियोचित सभी मंगलों से युक्त है, जो रत्नजटित चंद्रकला से सुशोभित है, जो वर्णस्वरुप है| जिनके हाथों में अभय, कशा, वर, अंकुश, कपाल, धनुष, शूल, कमल एवं चक्र सुशोभित है| उन गायत्री देवी का मैं ध्यान करता हूँ|
कवच:
ॐ गायत्री पूर्वतः पातु सावित्री पातु दक्षिणे।
ब्रह्मविद्या च मे पश्चादुत्तरे मां सरस्वती ॥1॥हिंदी अर्थ – गायत्री जी पूर्व दिशा में, सावित्री दक्षिण दिशा में, महाविद्या पश्चिम दिशा में एवं माता सरस्वती माता उत्तर दिशा में हमारी रक्षा करे|
पावकीं मे दिशं रक्षेत् पावकोज्वलशालिनी।
यातुधानीं दिशं रक्षेद्यातुधान गणार्दिनी ॥2॥हिंदी अर्थ – अग्नि की भांति प्रकाशपूर्ण देवी अग्निकोण में, यातुधानों का नाश करने वाली दक्षिण-पश्चिम में हमारी रक्षा करें|
पावमानीं दिशं रक्षेत् पवमान विलासिनी।
दिशं रौद्रीमवतु मे रुद्राणी रुद्ररूपिणी ॥3॥
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा।
एवं दश दिशो रक्षेत् सर्वतो भुवनेश्वरी ॥4॥हिंदी अर्थ – वायु के समान विलास करने वाली देवी वायव्यकोण में, रूद्र रूपिणी भगवती रुद्राणी उत्तर-पूर्व दिशा में हमारी रक्षा करे| ब्रह्माणी ऊपर एवं वैष्णवी नीचे की ओर हमारी रक्षा करे| इसी भांति सभी देवियाँ दस दिशाओं में रक्षा करें|
ब्रह्मास्त्र स्मरणादेव वाचां सिद्धिः प्रजायते।
ब्रह्मदण्डश्च मे पातु सर्वशस्वाऽस्त्र भक्षकः ॥5॥
ब्रह्मशीर्षस्तथा पातु शत्रूणां वधकारकः ।
सप्तव्याहृतयः पान्तु सर्वदा बिन्दुसंयुताः ॥6॥हिंदी अर्थ – समस्त शास्त्रों का नाश करने वाले ब्रह्मदंड से हमारी रक्षा करें| शत्रुओं का विनाश करने वाला ब्रह्मशीर्ष हमारी रक्षा करें| विसर्ग के सहित सप्रणव व्याहृतियाँ हमेशा हमारी रक्षा करें|
वेदमाता च मां पातु सरहस्या सदेवता।
देवीसूक्तां सदा पातु सहस्त्राक्षरदेवता ॥7॥हिंदी अर्थ – स-रहस्या, स-देवता एवं देवमाता हमारी रक्षा करें| जिसके सहस्त्राक्षर देवता है, वह देवी सूक्त हमारी रक्षा करें|
चतुष्षष्टिकलाविद्या दिव्याद्या पातु देवता।
बीजशक्तिश्च मे पातु पातु विक्रमदेवता ॥8॥हिंदी अर्थ – चतु: षष्टि कला सहित दिव्य विद्या हमारी रक्षा करें| बीज – शक्ति हमारी रक्षा करें| विक्रम देवता हमारी रक्षा करें|
तत्पदं पातु मे पादौ जड्डे मे सवितुः पदम् ।
वरेण्यं कटिदेशं तु नाभिं भर्गस्तथैव च ॥9॥
देवस्य मे तु हृदयं धीमहीति गलं तथा ।
धियो मे पातु जिह्वायां यः पदं पातु लोचने ॥10॥हिंदी अर्थ – ‘तत्’ पद पैर की रक्षा करें, ‘सवितुः’ पद जांघ की, ‘वरेण्यं’ कटि देश की एवं ‘भर्ग’ पद नाभिस्थान की रक्षा करें| ‘देवस्य’ हृदय की, ‘धीमहि’ गले की, ‘धियो’ जिव्हा की, ‘य:’ पद नेत्र की रक्षा करे|
ललाटे नः पदं पातु मूर्द्धानं मे प्रचोदयात्।
तद्वर्णः पातु मूर्द्धानं सकारः पातु भालकम् ॥11॥हिंदी अर्थ – ‘न:’ ललाट की, ‘प्रचोदयात’ सिर की रक्षा करें| ‘ततः’ वर्ण मूर्धा की एवं ‘स’ वर्ण भाल की रक्षा करें|
चक्षुषी मे विकारस्तु श्रोत्रं रक्षेत्तु कारकः ।
नासापुटे वकारो मे रेकारस्तु कपोलयोः ॥12॥
णिकारस्त्वधरोष्ठे च यकारस्तूर्ध्व ओष्ठके।
आस्यामध्ये भकारस्तु गोंकारस्तु कपोलयोः ॥13॥हिंदी अर्थ – ‘वि’ वर्ण दोनो नेत्रों की, ‘तु’ वर्ण कानों की, ‘व’ नासापुटो की, ‘रे’ वर्ण कपोलों की रक्षा करें| ‘ण’ वर्ण अधरोष्ठ की, ‘य’ ऊपर के होंठ की, ‘भ’ वर्ण मुख के मध्य में, ‘र्गो’ दोनों कपोलो की रक्षा करें|
देकारः कण्ठदेशे च वकारः स्कन्धदेशयोः ।
स्यकारो दक्षिणं हस्तं धीकारो वामहस्तकम् ॥14॥
मकारो हृदयं रक्षेद् हिकारो जठरं तथा ।
धिकारो नाभिदेशं तु योकारस्तु कटिद्वयम् ॥15॥हिंदी अर्थ – ‘दे’ कंठदेश की, ‘व’ स्कंधदेश की, ‘स्य’ दाहिने हाथ की, ‘धी’ बाएँ हाथ की रक्षा करें| ‘मं’ हृदय की, ‘हि’ जठर की, ‘धि’ नाभिस्थान की, ‘यो’ दोनों कटि भाग की रक्षा करें|
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Shri Gayatri Kavacham Lyrics Hindi
गुह्यं रक्षतु योकार ऊरू में नः पदाक्षरम्।
प्रकारो जानुनी रक्षेच्चोकारो जङ्घदेशयोः ॥16॥
दकारो गुल्फदेशं तु यात्कारः पादयुग्मकम् ।
जातवेदेति गायत्री त्र्यम्बकेति दशाक्षरा ॥17॥हिंदी अर्थ – ‘यो’ गुह्यांग की, ‘न:’ पद व अक्षर दोनों उरू, ‘प्र’ दोनों घुटनों की, ‘चो’ दोनों जंघा की रक्षा करें| ‘द’ गल्फ की, ‘यात’ हमारे दोनों पैरों की रक्षा करें|
सर्वतः सर्वदा पातु आपो ज्योतीति षोडशी।
इदं तु कवचं दिव्यं बाधा शत विनाशकम् ॥18॥
चतुष्षष्टिकलाविद्या सकलैश्वर्य सिद्धिदम् ।
जपारम्भे च हृदयं जपान्ते कवचं पठेत् ॥19॥हिंदी अर्थ – यह माता गायत्री देवी का कवच कई समस्याओं को नष्ट करने वाला है, चौसठ कलाएँ तथा ऐश्वर्य प्रदान करने वाला है| गायत्री जाप के प्रारम्भ में गायत्री-हृदय तथा जप के अंत में गायत्री कवच का पाठ करना चाहिए|
स्त्री गो ब्राह्मण मित्रादि द्रोहाद्यखिल पातकैः।
मुच्यते सर्वपापेभ्यः परं ब्रह्माधि गच्छति ॥20॥हिंदी अर्थ – स्त्री वध, ब्राह्मण वध, मित्रद्रोह तथा गोवध आदि पापों को नष्ट कर देता है| गायत्री कवच का पाठ करने वाला मनुष्य परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त हो जाता है|
पुष्पाञ्जलिं च गायत्र्या मूलेनैव पठेत् सकृत्।
शतसाहस्त्र वर्षाणां पूजायाः फलमाप्नुयात् ॥21॥हिंदी अर्थ – इस गायत्री कवच का सदैव पाठ कर मूल मंत्र से एक बार गायत्री देवी को पुष्पांजलि देने से हजारों वर्षों तक की पूजा का फल प्राप्त होता है|
भूर्जपत्रे लिखित्वैतत् स्वकण्ठे धारयेद् यदि।
शिखायां दक्षिणे बाहौ कण्ठे वा धारयेद् बुधः ॥22॥
त्रैलोक्यं क्षोभयेत् सर्व त्रैलोक्यं दहति क्षणात् ।
पुत्रवान् धनवाञ्छ्रीमान् नानाविद्यानिधिर्भवेत् ॥23॥हिंदी अर्थ – जो व्यक्ति इस कवच को भोजपत्र पर लिखकर, शिखा, कंठ व दाहिने हाथ में या मणिबंध में धारण करते है, वे क्षण भर में तीनों लोकों का नाश कर सकते है| वे धनवान, पुत्रवान तथा अनेकों विद्याओ के विशेषज्ञ बन जाते है|
ब्रह्मास्त्रादीनि सर्वाणि तदङ्गस्पर्शनात्ततः ।
भवन्ति तस्य तुच्छानि किमन्यत् कथयामि ते ॥24॥हिंदी अर्थ – गायत्री कवच पाठ के फल को बहुत कहने से क्या? ब्रह्मास्त्रादि भी उसके अंग के स्पर्श से तुच्छ हो जाते है|
न देयं परशिष्येभ्यो ह्यभक्तेभ्यो विशेषतः ।
शिष्येभ्यो भक्तियुक्तेभ्यो ह्यन्यथा मृत्युमाप्नुयात् ॥25॥हिंदी अर्थ – कहा जाता है कि गायत्री कवच के जप की विधि दुसरे शिष्यों को नहीं देनी चाहिए| तथा जो भक्त न हो, उसे भी नहीं देनी चाहिए| अपने शिष्य तथा भक्त को ही इस विधि के बारे में कहना चाहिए नहीं तो वह मृत्यु को प्राप्त कर लेता है|
इति श्रीअगस्त्यसंहितायां ब्रह्मनारायणसंवादे प्रकृतिखण्डे गायत्रीकवचं सम्पूर्णम् ॥
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